Ras Kise Kahate Hain

रस किसे कहते हैं, रस के भेद | Ras Kise Kahate Hain

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Ras Kise Kahate Hain : रस शब्द आनंद का पर्याय है। रस का संबंध ” स् ” धातु से माना गया है। रस का शाब्दिक अर्थ निचोड़ होता है। रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है।

जैसे :- आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नहीं होता, उसी प्रकार रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना गया है।

रसवादी आचार्यों ने काव्य में रस को ही मुख्य माना है। आज हम रस किसे कहते हैं ( Ras Kise Kahate Hain ), इसके कितने भेद ( Ras Ke Bhed ) हैं, उदाहरण सहित जानेंगे।


रस किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं? | Ras Kise Kahate Hain 

रस की परिभाषा ( Ras Kise Kahate Hain ) :- काव्य के पढ़ने, सुनने अथवा उसका अभिनय देखने में पाठक श्रोता या दर्शक को जो आनंद मिलता है, वही काव्य में रस कहलाता है।

Ras Kise Kahate Hain ( दूसरे शब्दों में ) – कविता नाटक या कहानी आदि पढ़ने सुनने या देखने से जो पाठक को एक प्रकार की विलक्षण आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं।



रस के अंग | Ras Ke Ang :

हिंदी व्याकरण में रस के चार अंग होते हैं:- 

  1. विभाव
  2. अनुभाव
  3. संचारी भाव
  4. स्थाई भाव

1. विभाव :- विशेष रूप से भाव को प्रकट करने वालों को भी विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं :- उद्दीपन विभाव और आलंबन विभाव।

2. अनुभाव :- वाणी और अंगों के अभिनय द्वारा जिनसे अर्थ प्रकट होता है, उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभव चार माने गए हैं :- आंगिक, वाचिक, आहार, सात्विक।

3. संचारी भाव :- रस का तीसरा अंग संचारी भाव होता है, जो स्थानीय भाव के साथ संरचण करते हैं, वे संचारी भाव कहलाते हैं।

यह संचारी भाव तैंतीस कहे गए हैं :- निर्वेद, शंका, गर्व, चिंता, मोह, विषाद, दैन्य, असूया, मृत्यु, मद, आलस्य, श्रम, उन्माद, प्रकृति, चपलता, अपस्मार, भय, बीड़ा, ग्लानि, जड़ता, हर्ष, धृति, मति, आवेग, निद्रा, स्वप्न, बोध, उग्रता, व्याधि, अमर्ष, वितर्क, स्मृति, उत्कंठा।

4. स्थाई भाव :- मनुष्य के हृदय में रति, शोक आदि कुछ भाव हर समय सुप्त अवस्था में रहते हैं, जिन्हें स्थाई भाव कहते हैं। इन भावों की संख्या नौ मानी गई है :- रति, उत्साह, शोक, क्रोध, हास्य, भय, जुगुप्सा, विस्मय, निर्वेद। 

ऊपर हमने आपको रस किसे कहते हैं ( Ras Kise Kahate Hain ) के बारे में बताया। अब – रस के भेद ( Ras Ke Bhed ) के बारे में जानते हैं।



रस के भेद | Ras Ke Bhed 

रस के नौ भेद होते हैं:-

  1. श्रृंगार रस
  2. हास्य रस
  3. करुण रस
  4. वीर रस
  5. अद्भुत रस
  6. भयानक रस
  7. रौद्र रस
  8. वीभत्स रस
  9. शांत रस
  • भक्ति रस
  • वात्सल्य रस।

कृपया ध्यान दें – यहां ” भक्ति रस ” और ” वात्सल्य रस ” श्रृंगार रस के विस्तृत क्षेत्र में आते हैं और भरत मुनि ने इनको रस नहीं माना है, इस लिए मूल नौ रस माने गए हैं।

1. श्रृंगार रस :- जहां नायक और नायिका के प्रेम पूर्वक प्रस्ताव क्रियाकलापों के उत्तम वर्णन होते हैं, वहां श्रृंगार रस होता है।

उदाहरण के लिए हम इस दोहे को प्रस्तुत करेंगे:-

राम को रूप निहारत जानकी,

कंगन के नग की परछाई,

याते सवै सुध भूल गई,

कर टेक रही पलटारत नाही।।

श्रृंगार रस दो प्रकार का होता है :- संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार। श्रृंगार रस का स्थाई भाव रत्ती होता है।

2. हास्य रस :- किसी घटना या भावना से संबंधित काव्य को पढ़ने से उत्पन्न रस को हास्य रस कहते हैं।

उदाहरण के लिए :-

इस दौड़ धूप में क्या रखा है,

आराम करो आराम करो, 

आराम जिंदगी की पूजा है, 

इससे ना तकलीफ होती, 

आराम सुधा की एक बूंद,

तन का दुबलापन खो देती।।

हास्य रस का स्थाई भाव हंसी होता है।

3. करुण रस :- इस रस में किसी भी प्रकार के दुख से संबंधित अनुभूति किसी काव्य को पढ़ने से होती है, उसे करुण रस कहते हैं।

उदाहरण :-

शोक विकल सब रोवहि रानी,

रूप सीलू बलू तेज वरवानी,

करही विलाप अनेक प्रकारा,

परिहि चूमि तल बारहि बारा।।

करुण रस का स्थाई भाव शोक होता है।



4. वीर रस :- जब काव्य में उत्साह, उमंग और पराक्रम से संबंधित जो भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें वीर रस कहते हैं।

उदाहरण के लिए :-

मैं सत्य कहता हूं,

सके सुकुमार न मानो मुझे,

यमराज से भी युद्ध को,

प्रस्तुत सदा मानो मुझे।।

वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता है।

5. अद्भुत रस :- जहां पर किसी आश्चर्यचकित वस्तुओं या और अलौकिक क्रियाकलापों को देखकर या उनसे संबंधित घटनाओं को देखकर जो भाव मन में उत्पन्न होते हैं, वहां पर अद्भुत रस होता है।

उदाहरण के लिए :-

बिनु पद चले सुने बिनु काना,

कर बिनु कर्म करें विधि नाना।।

अद्भुत रस का स्थाई भाव आश्चर्य होता है।

6. भयानक रस :- जिस घटनाओं का दृश्य को देखकर मन में भय उत्पन्न होता है उसे हम भयानक रस कहते हैं।

उदाहरण के लिए :-

उधर गरजती सिंधु लहरिया कुटिल काल के जालो सी,

चली आ रही फेन उँगलियाँ फन फैलाए बयालो सी।।

भयानक रस का स्थाई भाव भय होता है होता है।



7. रौद्र रस :- जिस काव्य रचना को पढ़कर या सुनकर ह्रदय में क्रोध के भाव उत्पन्न होते हैं, वहां पर रौद्र रस होता है।

उदाहरण के लिए :-

श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे,

सब शील अपना भूलकर करतल युगल मलने लगे।।

रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध होता है।

8. वीभत्स रस :- जिस काव्य रचना में घृणातम वस्तु या घटनाओं का उल्लेख हो, वहां पर वीभत्स रस होता है।

उदाहरण के लिए :-

सिर पर बैठीयो काक आंख दोऊ  खात निकारत,

खीचत जीभही सियार अति अनुदित उर धारत।।

वीभत्स रस का स्थाई भाव घृणा होता है।

9. शांत रस :- वह काव्य रचना जिसमें श्रोता के मन में निर्वेद के भाव उत्पन्न होते हैं, उसे शांत रस कहते हैं।

उदाहरण के लिए :-

मन रे तन कागज का पुतला,

लगे बुध विनसि जाए झण में,

गर्व करे क्यों इतना।।

शांत रस का स्थाई भाव निर्वेद होता है।



  • वात्सल्य रस:- जिस काव्य रचना में वहां पर स्नेह या वात्सल्य के भाव उत्पन्न हो उसे वात्सल्य रस कहते हैं।

उदाहरण के लिए:-

किलकत कान्ह घुटरूबन आवत, 

मनिमय कनक नंद के आंगन,

विम्ब फकरिवे धावत।।

वात्सल्य रस का स्थाई भाव स्नेह होता है।

  • भक्ति रस :- जिस काव्य रचना में ईश्वर के प्रति भक्ति विश्वास के भाव उत्पन्न हो, वहां पर भक्ति रस होता है।

उदाहरण के लिए :-

राम जपु राम जपु राम जपु बावरे,

घोर भव नीर निधि नाम निज नाव रे।

भक्ति रस का स्थाई भाव वैराग्य या अनुराग होता है।


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निष्कर्ष :

हमने आपको रस से संबंधित सारी जानकारी ( Ras Kise Kahate Hain, Ras Ke Ang, Ras Ke Bhed ) देने का यथा-संभव प्रयास किया है।

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धन्यवाद।

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