Damin e koh kya tha

दामिन-ए-कोह क्या था | Damin e koh kya tha

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दामिनकोह क्या था | Damin e koh kya tha

आज के इस लेख में हम आपसे बात करेंगे – ” दामिनकोह ” के बारे में, दामिनकोह क्या है ? और यह इतिहास से लेकर अब तक क्यों प्रचलित है ? इस लेख में आपको इतिहास से लेकर वर्तमान समय तक दामिनकोह के प्रचलन के बारे में बताएंगे। दामिनकोह से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारी को जानने के लिए यह लेख पूरा अवश्य पढ़ें।

दामिनकोह क्या था | Damin e koh kya tha

” दामिनकोह ” एक जगह का नाम है, भागलपुर से लेकर राजमहल तक एक वन क्षेत्र है। यह बात उस समय की है, जब भारत में अंग्रेजों का राज था। तब ब्रिटिश सरकार ने संथाल जाति को बचाने के लिए इस क्षेत्र का निर्माण किया था। जबकि ब्रिटिश सरकार का ” संसार ” जाति के लोगों को इस क्षेत्र में बसाने का उद्देश्य यह था, कि वह इस क्षेत्र को साफ करवा कर यहां पर खेती शुरू करना चाहते थे।

1832 में ब्रिटिश सरकार में जंगलों को साफ करवाने और खेती करने के लिए ” संथाल ” जाति के लोगों को यह स्थान दिया। ” संथाल ” जाति के लोगों को इस जमीन पर हल चलाने और खेती करने में कोई हिचक नहीं थी। ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य जंगलों पर खेती करवाने का था, जिससे उनका फायदा हो सके।

जमीन का यह पूरा बड़ा इलाका ” दामिनकोह ” कहा जाने लगा। अब श्रद्धालुओं को इसी जमीन के हिस्से में रहकर उस पर हल चलाकर खेती करनी थी।

बुकानन और संथाल

लगभग वर्ष 1810 में एक अंग्रेज अफसर बुकानन ने सर्वेक्षण के लिए राजमहल की पहाड़ी क्षेत्र की यात्रा की, जहां उन्हें पहाड़ी लोगों द्वारा संध्या और नफरत भरी निगाहों से देखा गया। क्योंकि पहाड़ी लोग अंग्रेज अफसरों को पसंद नहीं करते थे।

वहीं बुकानन ने देखा, कि ” संथाल ” जाति के कुछ लोगों ने जंगल को साफ करके खेती करने लायक बनाया है। तथा बीच में उसी स्थान पर अपने रहने के लिए घर भी बनाया है। यह बात बुकानन ने उस क्षेत्र के तत्कालीन कलेक्टर ” ऑगस्टस क्वीसलैंड ” को बताई उसके बाद ” क्वीसलैंड ” ने संथालो को पहाड़ी की तलहटी में बसाना शुरू कर दिया। तभी संथालो को दामिन में बसा दिया गया।

संथाल लोगों को जंगल साफ करने और खेती करने में कोई परेशानी नहीं थी। जबकि इसके विपरीत पहाड़ी लोगों को जंगल साफ करके खेती करने में बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता था, क्योंकि वह जंगल में अपने पशुओं को चराते और शिकार भी करते थे। इसलिए जंगल साफ करके खेती करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने संथालो को चुना।

संथालो को किस शर्त पर दी गई ज़मीन ?

ब्रिटिश सरकार द्वारा जब संथालो को यह जमीन दे गई, तो इस पर कुछ शर्त भी रखी गई थी। संथालो को दी गई जमीन के अनुदान पत्र में यह लिखा था, कि उन्हें दी गई जमीन के कम से कम 10वें हिस्से को अगले दस वर्षों तक जोतना है। उस जमीन का नक्शा तैयार किया गया और उस जमीन के चारों तरफ खंबे गाढ़ कर उसकी सीमा भी निर्धारित की गई। तथा पहाड़ी लोगों और मैदानी कृषको से इसे दूर कर दिया गया।

पहाड़ी पर रहने वाले लोगों को ब्रिटिश सरकार की उनके जीवन में दखल अंदाजी पसंद नहीं थी। इसलिए वह सरकार की बात मानने को तैयार नहीं थे। तथा वह खेती करने के लिए पहाड़ी जगह को जोड़ने के लिए भी तैयार नहीं थे, इसलिए ब्रिटिश सरकार ने ” संथाल ” जाति के लोगों को यह काम सौंपा।

संथालो की बढ़ती संख्या

धीरेधीरे उस जमीन पर संथालो की संख्या बढ़ने लगी। पहले संथालो की संख्या सिर्फ 3000 थी, लेकिन धीरे धीरे यह संख्या 82000 तक पहुंच गई। धीरेधीरे खेती की जमीन का विस्तार होता गया और इसी तरह से ब्रिटिश सरकार के पास राजस्व की संख्या भी बढ़ती गई। इतिहास में बारबार यह कहा गया है, कि संथाल अपनी जमीन के लिए लगातार चलते ही रहते थे लेकिन ” दामिनकोह ” में आकर उनकी यहाँ यात्रा खत्म हो गई।

संथालो का ” दामिनकोह ” तक का सफर

आरंभ में जब संथाल जाति के लोगों ने राजमहल की पहाड़ियों पर बसना शुरू कर दिया, तो पहाड़ियों के लोगों ने उनका प्रतिरोध करना शुरू किया तथा पहाड़ों पर आने पर उनके लिए रोक लगा दी गई। संस्थालो को पहाड़ियों के भीतर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया।

संथालो को निचली पहाड़ियों और घाटियों में आने से भी रोक दिया गया। संस्थालों को पहाड़ी के चट्टानी इलाकों तथा बंजर और शुष्क इलाकों तक सीमित कर दिया गया। जिसकी वजह से उनके रहनसहन पर बुरा असर पड़ा और वह धीरेधीरे गरीब होते चले गए।

इसलिए ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई ज़मीन पर वह खेती करने लगे, जिसे ” दामिन ” कहा गया। अब संथाल लोगों ने अपनी खानाबदोश वाली जिंदगी को छोड़कर एक ही स्थान पर रहकर खेती करना शुरू कर दिया। यह बाजारों के लिए वाणिज्यिक फसलों की खेती भी करते थे और साहूकारों के साथ लेनदेन भी करते थे।

संथालो के हाथों से जाती दामिन

जब धीरेधीरे संथाल लोग उस जमीन पर खेती करके उसी स्थान पर बस गए, तो वह बाजारों में भी सामान बेचने लगे तथा साहूकारों के साथ व्यापार भी करने लगे। लेकिन धीरेधीरे संथालो को इस बात का एहसास हो गया, कि दामिन भी अब उनके हाथ से जा रही है। यानि कि धीरेधीरे दामिन अब साहूकारों की जमीन बनती चली गई।

संथाल लोग जिस भी जमीन के टुकड़े को साफ करके उस पर खेती करना शुरू करते थे, उस पर राज्य सरकार भारी कर ( Tax ) लगाती थी। उस जमीन पर साहूकार लो बहुत ऊंची ब्याज दर लगाते थे। जिसे अदा करना संथालो के लिए बहुत मुश्किल होता था।

ब्याज की दर समय पर ना अदा करने से साहूकार उस जमीन पर अपना कब्जा कर लेते थे। धीरेधीरे साहूकार लोग दामिन पर अपना कब्जा जमा रहे थे।


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निष्कर्ष:-

आज के इस लेख में हमने जाना कि दामिन-ए-कोह क्या था | Damin e koh kya tha और इसका संथालो से क्या लेना देना है ? किस तरह से संस्थालो ने इस जमीन पर खेती करना शुरू की। तथा ब्रिटिश सरकार ने किस प्रकार संथाल जाति के लोगों का फायदा उठाकर अपने फायदे के लिए उनसे खेती करवाना शुरू किया।

उम्मीद है, आपको हमारी यह जानकारी ( Damin e koh kya tha ) अच्छी लगी होगी। यदि आप इस लेख से संबंधित कोई प्रश्न पूछना चाहते हैं, तो कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं।

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